
तल्ख है जाम तो शीरीन बना लेता हूं,
गमों के दौर में चेहरे को सजा लेता हूं
हरएक शाम किसी झूमते मैखाने में,
मैं खुद को ज़िन्दगी से खूब छिपा लेता हूँ
कहीं फरेब न हो जाए उनकी आँखों से,
मैं अपने जाम में दो घूँट बचा लेता हूँ
गली में खेलते बच्चों को देखकर अक्सर,
मैं खुद को ज़िन्दगी के तौर सिखा लेता हूँ
इसी उम्मीद में कि नींद अब ना टूटेगी,
बस एक ख्वाब है, पलकों पे सजा लेता हूँ
सुलगती आग के धुएँ में बैठके अक्सर,
मैं अपने अश्क पे एहसान जता लेता हूँ
चुका रहा हूँ ज़िन्दगी की किश्त हिस्सों में,
मैं आंसुओं को कई बार बहा लेता हूँ
तमाम फिक्र-ए-मसाइल हैं मुझसे वाबस्ता,
कलम से रोज़ नए दोस्त बना लेता हूँ
मेरे नसीब में शायद यही इबादत है,
वज़ू के बाद काफ़िरों से दुआ लेता हूं
तमाम ज़ख्म मिल चुके हैं इन बहारों से,
मैं अब खिज़ान तले काम चला लेता हूँ
जला रहे वो चिरागों को, चलो अच्छा है,
उन्ही को सोच के सिगरेट जला लेता हूँ
खुदा का शुक्र है नशे में आज भी "रंजन",
मैं पूछने पे अपना नाम बता लेता हूँ
14 comments:
हरएक शाम किसी झूमते मैखाने में,
मैं खुद को ज़िन्दगी से खूब छिपा लेता हूँ
waaah ustaad ... qatl ...!!
मेरे नसीब में शायद यही इबादत है,
वज़ू के बाद काफ़िरों से दुआ लेता हूं
subhan allah ... :)
aur mere hisaab se hasil-e-gHazal sher hai ye maqtaa...
खुदा का शुक्र है नशे में आज भी "रंजन",
मैं पूछने पे अपना नाम बता लेता हूँ
yun hi likhte rahiye ... kaun kehta hai ki qatl ke tarike purane ho gaye hain ... naye seekhne ho to ranjan se milein ... :)
कहीं फरेब न हो जाए उनकी आँखों से,
मैं अपने जाम में दो घूँट बचा लेता हूँ
इसी उम्मीद में कि नींद अब ना टूटेगी,
बस एक ख्वाब है, पलकों पे सजा लेता हूँ
खुदा का शुक्र है नशे में आज भी "रंजन",
मैं पूछने पे अपना नाम बता लेता हूँ
एक से बढ़ कर एक बेहतरीन शेरों से सजी आप की ग़ज़ल, जताती है की आप इस फन के उस्ताद है. इस उम्र में ये तेवर हैं तो माशाल्लाह आगे जाकर आप किस पाए के शायर होंगे ये सोचना मुश्किल नहीं. हमारी दुआ है की ग़ज़ल गोई में आप बहुत ऊंचा मुकाम हासिल करें. आमीन
नीरज
तल्ख है जाम तो शीरीन बना लेता हूं,
गमों के दौर में चेहरे को सजा लेता हूं
bhut khub. ati uttam. jari rhe.
बहुत बढिया लिखा-
गली में खेलते बच्चों को देखकर अक्सर,
मैं खुद को ज़िन्दगी के तौर सिखा लेता हूँ
क्या लिखू रंजन तुम पर कुछ लिखना जैसे ....बस लफ्ज़ नही है......
कहीं फरेब न हो जाए उनकी आँखों से,
मैं अपने जाम में दो घूँट बचा लेता हूँ
गली में खेलते बच्चों को देखकर अक्सर,
मैं खुद को ज़िन्दगी के तौर सिखा लेता हू
सुलगती आग के धुएँ में बैठके अक्सर,
मैं अपने अश्क पे एहसान जता लेता हूँ
हर शेर मुकम्मल है दोस्त......हर शेर......
तमाम फिक्र-ए-मसाइल हैं मुझसे वाबस्ता,
कलम से रोज़ नए दोस्त बना लेता हूँ
मेरे नसीब में शायद यही इबादत है,
वज़ू के बाद काफ़िरों से दुआ लेता हूं
जला रहे वो चिरागों को, चलो अच्छा है,
उन्ही को सोच के सिगरेट जला लेता हूँ
खुदा का शुक्र है नशे में आज भी "रंजन",
मैं पूछने पे अपना नाम बता लेता हूँ
सुलगती आग के धुएँ में बैठके अक्सर,
मैं अपने अश्क पे एहसान जता लेता हूँ
waah amit...poori ghazal lajawaab.
हरएक शाम किसी झूमते मैखाने में,
मैं खुद को ज़िन्दगी से खूब छिपा लेता हूँ
kya baat hai
चुका रहा हूँ ज़िन्दगी की किश्त हिस्सों में,
मैं आंसुओं को कई बार बहा लेता हूँ
bhaut khoob janaab
कहीं फरेब न हो जाए उनकी आँखों से,
मैं अपने जाम में दो घूँट बचा लेता हूँ
बहुत खूब ....
मेरे नसीब में शायद यही इबादत है,
वज़ू के बाद काफ़िरों से दुआ लेता हूं
आपके लिखे लफ्जों ने कब मेरे दिल को नही छुआ है ...बस एक गुजारिश अगला कलाम सूफी लिखे ...
जो खो गया तो पा लिया तुमको,
मेरे अंदर मेरे बाहर तुम हो ....मैं अभी तक इस के नशे से बाहर नही आ पायी हूँ ईश्वर से मिला देती है यह रचना मुझे जब भी पढ़ती हूँ :)
वाह!!!!!!!!!!
क्या खूब लिखा है कि
चुका रहा हूँ ज़िन्दगी की किश्त हिस्सों में,
मैं आंसुओं को कई बार बहा लेता हूँ
पर मियां ये आँसू ही हैं जिन्हें बहुत से शायर मोतियों से नवाजते हैं , और मोती कितने कीमती होते हैं शायद आप भी जानते हैं. आगे से जिन्दगी की इबादतों को गजले बना कर ही पेश करें और हम सभी कद्रदानों को अपनी किस्त प्राप्त करते रहने दें,
चन्द्र मोहन गुप्त
तल्ख है जाम तो शीरीन बना लेता हूं,
गमों के दौर में चेहरे को सजा लेता हूं
हरएक शाम किसी झूमते मैखाने में,
मैं खुद को ज़िन्दगी से खूब छिपा लेता हूँ
कहीं फरेब न हो जाए उनकी आँखों से,
मैं अपने जाम में दो घूँट बचा लेता हूँ
Marhaba........ qatl hai saahab...
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Har sher mein tasveer chupi hai ziist ki youN,
Mano K har sher meiN maiN khud ko pa leta hooN
Mila jo Ranjan sa hum sukhan muJHko,
MaiN kabhi khud ko khuda bata leta hooN
कहीं फरेब न हो जाए उनकी आँखों से,
मैं अपने जाम में दो घूँट बचा लेता हूँ
बहुत खूब रंजन जी.
marhaba anjan sa'ab
kya khoob ghazal kahi hai ..... ek ek sher jajbaaton main doba ... kis sher ki kahoon .... sabhi aala hain ...... dil khush ho gaya aaj yeh kalaam padh kar :)
जला रहे वो चिरागों को, चलो अच्छा है,
उन्ही को सोच के सिगरेट जला लेता हूँ
kya baat hai waah waah!
वाह! क्या खूब कहा है...
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