
सियाह रात के अख्तर तुम हो
कहीं हो गूंज शंख नादों की,
कहीं नमाज़ का मंज़र तुम हो
जो खो गया तो पा लिया तुमको,
मेरे अंदर मेरे बाहर तुम हो
सफ़र जो दश्त से गुज़रता है,
मेरी उम्मीद का सागर तुम हो
उतर गए हो इस कदर गोया,
कोई नश्तर कोई खंजर तुम हो
भला कैसे गुमान हो उसको,
लिखे "रंजन" मगर शायर तुम हो
5 comments:
सफ़र जो दश्त से गुज़रता है,
मेरी उम्मीद का सागर तुम हो
उतर गए हो इस कदर गोया,
कोई नश्तर कोई खंजर तुम हो
wah kya baat hai har sher kamaal hal
hamesha ki tarah bahut pasand aaya
जो खो गया तो पा लिया तुमको,
मेरे अंदर मेरे बाहर तुम हो
सफ़र जो दश्त से गुज़रता है,
मेरी उम्मीद का सागर तुम हो
बेहद ख़ुद में डुबो लेने वाली पंक्तियाँ लगी है
सरसरी ही सही कई चीज़ें देख गया .आपकी काविशों और कोशिशों को देख तबियत खुश हो गयी .
कई शे'र जेहन नशीं होने की कुवत रखते हैं .दुआ यही है ,जोर-कलम और ज्यादा .कभी फ़ुर्सत मिले तो इस लिंक पर भी जाएँ और अपनी कीमती राय से नवाजें .www.shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com और www.hamzabaan.blogspot.com
माँ पर किसी का इक शे'र याद आगया :
माँ-बाप की खिदमत मैं इसलिए करता हूँ
इस पेड़ का साया भी बच्चों को मिलेगा
ब्लॉग मुबारक हो .अल्लाह नज़र-बद से बचाए .आमीन.
इस को मैंने बुक मार्क कर किया है ..यदि कोई इसको आवाज़ दे तो यह और भी अच्छी लगेगी ...काश मेरी आवाज़ अच्छी होती :) तो इसको जरुर गाती ,,यह आपके लिखे हुए में मुझे अब तक सबसे अच्छी लगी है इसको एक बार जरुर पढ़ लेती हूँ दिन में ...लिखते रहे
Kya baat hai ranjan sahab.. got this chance to visit your blog for the first time.. and as expected its awesome..
Divay BBSR.. :)
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