Saturday, June 28, 2008

वही होगी...

सबा-ए-इश्क चल गयी होगी,
फिजा में आग लग गयी होगी

वो सुबुही सी छू गयी मुझको,
शजर पे ओस की कमी होगी

सुलग रहा है को‌ई धूं धूं कर,
करीब ज़ब्त की नमी होगी

को‌ई तो खींच रहा है हर सू,
मुझे यकीन है वही होगी

खुरच के देख मेरे चारागर,
जिगर पे मुद्दतें जमी होगी

चिता की आग में वो बात कहाँ,
कफ़न में कैद ज़िंदगी होंगी

सियाह रात का सहमा मंज़र,
पलट के देख, रौशनी होगी

खुदी में चूर आसमां वालों,
जड़ों में आज भी ज़मीं होगी

हंसी की आड़ में छिपा था वो,
गमों को अश्क की कमी होगी

लिखूं मैं और, मगर रहने दो,
किसी की आँख भर गयी होगी

Friday, June 20, 2008

छिपे अश्क...

बहुत करीब से दिखा है आज चांद मुझे,
तेरे खयाल आज रात न सोने देंगे

मैं थक गया हूं छिपे अश्क को ढोते ढोते,
मगर तमाम सवालात न रोने देंगे

उफ़क पे शम्स दिखे और सहर हो जाए,
मैं जानता हूं ये हालात न होने देंगे

Thursday, June 12, 2008

कुछ शेर माँ के नाम...

१) मेरे अंजाम के रस्ते भी मुझको राह देते हैं,
मेरा आगाज़ होता है मेरी मां की दुआ लेकर


२)मै मां के इस हुनर पे आज भी हैरान होता हूं,
मेरे आंसू टपकते हैं उसी की आंख से होक़र


३) मैं जब भी ज़िन्दगी की दौड में कुछ टूट जाता हूं,
ये आंखें भीग जाती हैं, मुझे मां याद आती है


४)मुझे न इश्क न उल्फ़त की चाह है या रब,
मैं खुश वहीं हूं जहां मां सा प्यार मिलता है


५)कोई तन्हा सा कतरा मुश्किलों से रोक रखा था,
फ़कत मां के तसव्वुर ने मगर बरसात कर डाली


)मेरी शैतानियो के बाद मां अक्सर ही गुस्से में,
मुझे तो मारती थप्पड मगर रोती रही दिनभर


पर एक बार कलम ने ये भी लिखा दिया

7) शहर के तौर हैं मुमकिन है खलल पड़ती हो,
वो माँ को गाँव में लाचार छोड़ आया है...