सबा-ए-इश्क चल गयी होगी,
फिजा में आग लग गयी होगी
वो सुबुही सी छू गयी मुझको,
शजर पे ओस की कमी होगी
सुलग रहा है कोई धूं धूं कर,
करीब ज़ब्त की नमी होगी
कोई तो खींच रहा है हर सू,
मुझे यकीन है वही होगी
खुरच के देख मेरे चारागर,
जिगर पे मुद्दतें जमी होगी
चिता की आग में वो बात कहाँ,
कफ़न में कैद ज़िंदगी होंगी
सियाह रात का सहमा मंज़र,
पलट के देख, रौशनी होगी
खुदी में चूर आसमां वालों,
जड़ों में आज भी ज़मीं होगी
हंसी की आड़ में छिपा था वो,
गमों को अश्क की कमी होगी
लिखूं मैं और, मगर रहने दो,
किसी की आँख भर गयी होगी
Satpal Khayaal at Rekhta Mushaira
3 weeks ago