Saturday, June 28, 2008

वही होगी...

सबा-ए-इश्क चल गयी होगी,
फिजा में आग लग गयी होगी

वो सुबुही सी छू गयी मुझको,
शजर पे ओस की कमी होगी

सुलग रहा है को‌ई धूं धूं कर,
करीब ज़ब्त की नमी होगी

को‌ई तो खींच रहा है हर सू,
मुझे यकीन है वही होगी

खुरच के देख मेरे चारागर,
जिगर पे मुद्दतें जमी होगी

चिता की आग में वो बात कहाँ,
कफ़न में कैद ज़िंदगी होंगी

सियाह रात का सहमा मंज़र,
पलट के देख, रौशनी होगी

खुदी में चूर आसमां वालों,
जड़ों में आज भी ज़मीं होगी

हंसी की आड़ में छिपा था वो,
गमों को अश्क की कमी होगी

लिखूं मैं और, मगर रहने दो,
किसी की आँख भर गयी होगी

8 comments:

डॉ .अनुराग said...

वो सुबुही सी छू गयी मुझको,
शजर पे ओस की कमी होगी

सुलग रहा है को‌ई धूं धूं कर,
करीब ज़ब्त की नमी होगी

को‌ई तो खींच रहा है हर सू,
मुझे यकीन है वही होगी

खुरच के देख मेरे चारागर,
जिगर पे मुद्दतें जमी होगी

एक एक शब्द आफरीन .........सुभान अल्लाह...आपकी कलम में जादू है.......

36solutions said...

बढिया प्रयास है आपका, धन्यवाद । इस नये हिन्दी ब्लाग का स्वागत है ।
शुरूआती दिनों में वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें इससे टिप्पणियों की संख्या प्रभावित होती है
पढें हिन्दी ब्लाग प्रवेशिका

रंजन गोरखपुरी said...

अनुराग सहब, इस दयार में आपकी आमद बेहद प्रेरणादायी होती है! बस इस नज़र-ए-इनायत को बरकरार रखें!


संजीव जी, मैं शुक्रगुज़ार हूं की आपने इस कोने में दस्तक दी! ब्लाग की दुनिया में मैं एकदम नया हूं, पर "आरंभ" में दी गई मुफ़ीद जानकारियां मेरे बहुत काम आएंगी!

Raji Chandrasekhar said...

स्वागत है ।
मैं हिन्दी का हिन्दीतर ब्लॊगर हूँ ।
केरल के तिरुवनन्तपुरम में रहता हूँ,बीवी-बच्चों के साथ ।

Vinay said...

work is great!

श्रद्धा जैन said...

Ranjan saheb

aapke is gazal ne apne jhande gaad diye hain

चिता की आग में वो बात कहाँ,
कफ़न में कैद ज़िंदगी होंगी

ye sher waqayi kamaal raha

aapko apne blog par jodh diya hai guru ji
taki aapki kalam se taar jude rahe

सतपाल ख़याल said...

सबा-ए-इश्क चल गयी होगी,
फिजा में आग लग गयी होगी
खूब..
वो सुबुही सी छू गयी मुझको,
शजर पे ओस की कमी होगी
थोड़ा कठिन शे’र

सुलग रहा है को‌ई धूं धूं कर,
करीब ज़ब्त की नमी होगी
्खूब

खुरच के देख मेरे चारागर,
जिगर पे मुद्दतें जमी होगी
हासिले ग़ज़ल शे’र

खुदी में चूर आसमां वालों,
जड़ों में आज भी ज़मीं होगी
बहुत खूब..

लिखूं मैं और, मगर रहने दो,
किसी की आँख भर गयी होगी

राजेश अग्रवाल said...

प्रिय मित्र, अक्सर मैंने कविताओं वाले ब्लाग पढे बगैर क्लोज़ किया है. पर आपके पास ठहर गया. बेहतरीन हैं. मुझे यकीन है आपने खुद लिखा होगा. आपने मात्राओं और लय पर पूरा ध्यान रखा है. उम्दा लिखते हैं. फ़िराक साहब की आपने याद दिला दी, गोरखपुरी जी. लिखें लगातार लिखें. मेरी शुभकामनाएं स्वीकार करें.
sarokaar.blogspot.com