
मेरा आगाज़ होता है मेरी मां की दुआ लेकर
२)मै मां के इस हुनर पे आज भी हैरान होता हूं,
मेरे आंसू टपकते हैं उसी की आंख से होक़र
३) मैं जब भी ज़िन्दगी की दौड में कुछ टूट जाता हूं,
ये आंखें भीग जाती हैं, मुझे मां याद आती है
४)मुझे न इश्क न उल्फ़त की चाह है या रब,
मैं खुश वहीं हूं जहां मां सा प्यार मिलता है
५)कोई तन्हा सा कतरा मुश्किलों से रोक रखा था,
फ़कत मां के तसव्वुर ने मगर बरसात कर डाली
६ )मेरी शैतानियो के बाद मां अक्सर ही गुस्से में,
मुझे तो मारती थप्पड मगर रोती रही दिनभर
पर एक बार कलम ने ये भी लिखा दिया
7) शहर के तौर हैं मुमकिन है खलल पड़ती हो,
वो माँ को गाँव में लाचार छोड़ आया है...
8 comments:
मैने सोचा मै ही पहला शख्स बनू आपके ब्लाग पर
आपको बधाई देने के लिए. रंजन पागल नही अहसास से लबरेज इन्सान है..
किस शेर को लाजवाब कहूँ ,एक एक शेर अपने आप मे मुकम्मल है.......आखिरी शेर ने आँखे गीली कर दी यार ....
Mai shukar gujar hu us MAA ka jisney yeh dil banaya...aur karajdar ho us mohal ka jisney yeh shayar banaya !!
Bismila kabul kijiye ga !!
koii ghazal ho jaye...
mind blowing...
bhai sahab mauj aa gayi dekh padh kar aise hi achhhe achhhe sher likh ker samaaj ko dikkat dete rahiye
Lajwaab!
बहुत सुंदर आपकी माँ है..
मेरी उम्मर उन्हें लग जाए....
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