Sunday, August 3, 2008

ये इश्क इश्क है इश्क इश्क...


सागर में कहीं डूब ग‌ई मय तो इश्क है,
आरा‌इशों में कैद हु‌ई शै तो इश्क है
दर्द-ओ-फ़ुगां यहां पे को‌ई चीज़ ही नही,
कांटों में अगर जश्न लगा है तो इश्क है

रुसवा अगर ये ज़ीस्त हु‌ई, इश्क नही है,
रूहों में अगर हिज्र हु‌ई, इश्क नही है
छूने से फ़कत साथ जो महसूस हो बिस्मिल,
पलकों में नही बंद को‌ई, इश्क नही है

जब भी अना रकीब लगे, इश्क वहीं है
हर फ़ासला करीब लगे, इश्क वहीं है
शाहिद हो मेरा शाद सिर्फ़ एक दु‌आ हो,
ईसा नफ़स सलीब लगे, इश्क वहीं है

बदमस्त सा खुमार मेरे यार इश्क में
बिजली की बादलों में है झनकार इश्क में,
बस जिस्म और अना को हटाकर तो देखि‌ए,
अल्लाह ही दिखेगा जिधर यार इश्क में

आरा‌इश-ए-बहार, इश्क कर के देखि‌ए
ताबीर-ए-ख्वाब-ए-यार, इश्क कर के देखि‌ए
शोले से गुल बनी है जहां सीरत-ए-आदम,
"मैं" खुद हूं इश्तेहार, इश्क कर के देखि‌ए

7 comments:

Pramendra Pratap Singh said...

अच्‍छी रचना,

मै और शै की बात समझ से परे लगी

रंजू भाटिया said...

बदमस्त सा खुमार मेरे यार इश्क में
बिजली की बादलों में है झनकार इश्क में,
बस जिस्म और अना को हटाकर तो देखि‌ए,
अल्लाह ही दिखेगा जिधर यार इश्क में

वाह बहुत खूब ...इश्क खुदा है .दिल में उतर गई यह पंक्तियाँ .बेहतरीन ,,

नीरज गोस्वामी said...

जब भी अना रकीब लगे, इश्क वहीं है
हर फ़ासला करीब लगे, इश्क वहीं है
बेहतरीन...वाह...वा...
नीरज

डॉ .अनुराग said...

आरा‌इश-ए-बहार, इश्क कर के देखि‌ए
ताबीर-ए-ख्वाब-ए-यार, इश्क कर के देखि‌ए
शोले से गुल बनी है जहां सीरत-ए-आदम,
"मैं" खुद हूं इश्तेहार, इश्क कर के देखि‌ए

yun to sab apne aap me behtreen hai par ye.....aaha kya baat kahi..

pallavi trivedi said...

जब भी अना रकीब लगे, इश्क वहीं है
हर फ़ासला करीब लगे, इश्क वहीं है
शाहिद हो मेरा शाद सिर्फ़ एक दु‌आ हो,
ईसा नफ़स सलीब लगे, इश्क वहीं है
kya baat..ek aur nayab rachna.

श्रद्धा जैन said...

बदमस्त सा खुमार मेरे यार इश्क में
बिजली की बादलों में है झनकार इश्क में,
बस जिस्म और अना को हटाकर तो देखि‌ए,
अल्लाह ही दिखेगा जिधर यार इश्क में


hum agree hain ji

seema said...

रुसवा अगर ये ज़ीस्त हु‌ई, इश्क नही है,
रूहों में अगर हिज्र हु‌ई, इश्क नही है
छूने से फ़कत साथ जो महसूस हो बिस्मिल,
पलकों में नही बंद को‌ई, इश्क नही है

जब भी अना रकीब लगे, इश्क वहीं है
हर फ़ासला करीब लगे, इश्क वहीं है
शाहिद हो मेरा शाद सिर्फ़ एक दु‌आ हो,
ईसा नफ़स सलीब लगे, इश्क वहीं है----jee yeh toh ...bas ...bahut hi badhiya..ishq kya hai aur kya nahi hai ....!!!bahut hiii acha laga..