
अबके हम बिछडे तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें,
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
ढूंढ उजडे हुए लोगों में वफ़ा के मोती,
ये खज़ाने तुझे मुमकिन है खराबों में मिलें
तू खुदा है ना मेरा इश्क फ़रिश्तों जैसा,
दोनो इन्सां हैं तो क्यो इतने हिजाबों में मिलें
गम-ए-दुनिया भी गम-ए-यार में शामिल कर लो,
नशा बढता है शराबें जो शराबों में मिलें
आज हम दार पे खैंचे गए जिन बातों पर,
क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें
अब न वो मैं हूं न तू है न वो माज़ी है "फ़राज़",
जैसे दो शक्स तमन्ना के सराबों में मिलें
_______________जनाब अहमद फ़राज़ साहब
तेरी तहरीर में हर शक्स का चेहरा है "फ़राज़",
तेरे सागर में हर इक बूंद है गौहर कोई...
शत शत नमन उर्दू के इस महान उपासक को!!
16 comments:
aameen
जिनकी ग़ज़लों को सुनते बड़े हुए हैं उनके यूँ अचानक चले जाने से हुई कमी को कोई नहीं पूरा कर सकता...वो किसी मुल्क के शायर नहीं थे....पूरी दुनिया के थे...
खुदा उनकी रूह को सुकून अता फरमाएं...
नीरज
अहमद फराज साहब को हमारी श्रद्धान्जली।
जी हाँ रंजन....समाचारों को देखते देखते अचानक निचली लाइन पर नजर पड़ी ....इस्लामाबाद के हस्पताल में निधन ..धडाधड सारे चैनल ढूंढ मारे .....वाकई एक बहुत बड़ा नुकसान है
सुन कर दुःख हुआ ..यह पहला शेर तो सबकी जुबान पर रहता है
शायर अहमद फ़राज़ साहेब को श्रृद्धांजलि!!
फराज साहब का जाना सचमुच एक क्षति है उर्दू शायरों के लिए....उनकी जो ग़ज़ल आपने पेश की है वह बेजोड़ है!
फ़राज़ साहब को श्रद्धांजलि ! नमन!!
उर्दू के इस महान शायर को ढेरो श्रद्धांजलि...
wakai...apoorniya kshati..
unki lekhni ko naman....
faraz sahab keliye mera shradha suman........
regards
Arsh
भाई गोरखपुरी,
पहले तो इस गोरखपुरिया का सलाम.
रही बात प्रस्तुति की तो आपके निश्चय ही लाजवाब.
अहमद साहब को श्रद्धासुमन.
आलोक सिंह "साहिल"
आपके उम्दा ब्लॉग पर आ कर
दिली सुकून और खुशी महसूस हुई ........
---मुफलिस---
Aaz kal kahan ho?
अगर यकीं नहीं आता तो आजमाये मुझे
वो आइना हैं तो तो फिर आइना दिखाए मुझे
बहोत दिनों से मैं इन पत्थरों में पत्थर हूँ
कोई तो आये जरा देर को रुलाये मुझे
मैं चाहता हूँ की तुम ही मुझे इजाज़त दो
तुम्हारी तरह से कोई गले लगाये मुझे
अजब चराग हूँ दिन रात जलता रहता हूँ
मैं थक गया हूँ हवा से कहो बुझाए मुझे
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उनका सुखन लाजवाब है।
सादर श्रद्धान्जली।
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