कल (25 अगस्त, 2008) उर्दू अदब के एक स्वर्णिम अध्याय का दुःखद अंत हो गया! जनाब श्री अहमद फ़राज़ साहब हमारे बीच नही रहे! उन्होने इस्लामाबाद के एक अस्पताल में अंतिम सासें लीं! खुदा उनकी रूह को तस्कीन-ए-अर्श बक्शे!
अबके हम बिछडे तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें,
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
ढूंढ उजडे हुए लोगों में वफ़ा के मोती,
ये खज़ाने तुझे मुमकिन है खराबों में मिलें
तू खुदा है ना मेरा इश्क फ़रिश्तों जैसा,
दोनो इन्सां हैं तो क्यो इतने हिजाबों में मिलें
गम-ए-दुनिया भी गम-ए-यार में शामिल कर लो,
नशा बढता है शराबें जो शराबों में मिलें
आज हम दार पे खैंचे गए जिन बातों पर,
क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें
अब न वो मैं हूं न तू है न वो माज़ी है "फ़राज़",
जैसे दो शक्स तमन्ना के सराबों में मिलें
_______________जनाब अहमद फ़राज़ साहब
तेरी तहरीर में हर शक्स का चेहरा है "फ़राज़",
तेरे सागर में हर इक बूंद है गौहर कोई...
शत शत नमन उर्दू के इस महान उपासक को!!
Satpal Khayaal at Rekhta Mushaira
1 day ago